Quantcast
Channel: हुंकार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 135

हो गए राजेश खन्ना, अब कुछ जिंदा लोगों को भी देखें भइया

$
0
0
दीदी अपना काम खत्म कर चुकी थी और रोज की अपेक्षा आज कुछ ज्यादा ही जल्दी में थी. रोज काम के बाद थोड़ी ही देर सही, मेरे पास बैठती. दुख-सुख, गर गृहस्थी की बातें बताती. मेरी हरकतों पर हंसती. विम जब खत्म हो गया है भइया तो इसकी शीशी रखकर क्या करोगे. अरे दीदी, मैंने सुप्रीम एन्क्लेव के सामने देखा कि झालमूढ़ी बनानेवाले ने इसमें सरसों तेल रखे हुए है और उससे पहली की कफ सिरप की बोतल के ढक्कन पर छेद नहीं करने होते. मेरी उससे बात हुई तो उसने कहा आपके पास खत्म होगा तो हमें दे दीजिएगा इसलिए ऱकने कहा था.हा हा...


रुक जाइए दीदी, बस ये नींबू-पानी पीकर चले जाइएगा. नहीं भइया, आज नहीं. घर में बिटिया अकेली है, इंतजार कर रही होगी. घर के काम निबटाने के बाद मैं उनके साथ चाय,नींबू-पानी या ऐसा ही कुछ साथ पीना अच्छा लगता.

 लेकिन आज रुकने के लिए तैयार नहीं थी. साढ़े दस बजे से मुझे हर हाल में टीवी देखनी थी,मैं देखने लगा. थोड़ी देर तो वो पर्दे पकड़कर खड़ी रही फिर मोढ़े पर इत्मिनान. से बैठ गयी. आमतौर पर मैं किसी के साथ टीवी देखना पसंद नहीं करता. हो-हल्ले या किसी के साथ मैं पढ़ाई तो कर सकता हूं लेकिन टीवी नहीं देख पाता लेकिन दीदी का साथ बैठकर देखना अच्छा लग रहा था. इससे पहले मेरे साथ वो सत्यमेव जयते के तीन एपीसोड देख चुकी है.

 राजेश खन्ना की शवयात्रा देखकर उनकी आंखें छलछला जा रही थी. हम बदल-बदलकर हिन्दी चैनल देख रहे थे लेकिन सबसे सही आइबीएन7 लग रहा था..न्यूज24 के पास पचास उनसुनी कहानियां का पहले से माल पड़ा है सो बार-बार उसे ही दिखाए जा रहा था. आजतक पर अभिसार का कुछ खास असर था नहीं.हम आइबीएन7 पर ही टिके रहे.
जानते हैं भइया, जब अराधना फिल्म आयी थी न तो हमारा रिश्ता आया था. देख-सुन लेने के बाद हमारी होनेवाली नन्दें हमें सिनेमाहॉल ले गई थी दिखाने. हम चौदह साल के थे, शर्ट और पैंट पहनते थे. अम्मी से पूछकर चले गए देखने.नन्दें बाहर निकलकर मजाक करने लगी. निकाह तो नहीं हुई थी लेकिन तभी से भाभी मानने लगी थी..मैं चैनल की वीओ भूल चुका था और स्क्रीन पर चल रही फुटेज में दीदी की कहानी समाती चली जा रही थी. एक बार लगा भी कि इसीलिए मैं किसी के साथ टीवी नहीं देख पाता लेकिन जब चैनल पर सब मोनोटोनस होता गया, दीदी की बातों को ज्यादा गौर से सुनने लगा.
शवयात्रा में पता नहीं क्या सम्मोहन होता है कि लगता है एक-एक चीज देखें. जीवन में पहली बार राजीव गांधी की शवयात्रा की पल-पल की तस्वीरें दूरदर्शन पर देखी थी. उसके बाद तो निजी समाचार चैनलों पर कई हस्तियों की. खैर, टीवी देखते हुए दीदी के चेहरे पर कई तरह के भाव चढ़ते-उतरते जा रहे थे. इंसान कहां सब दिन रह जाता है भइया, जो करके जाता है, वही याद रह जाता है.

अरे,साढ़े ग्यारह बज गया. हम चलते हैं अब भइया, मरा आदमी को तो इतनी देर देख ही लिया, हम तो ये देखने बैठे थे कि आपलोगों में अंतिम विदाई कैसे करते हैं,टीवी पर देखते इनको. ये तो दिखाया ही नहीं. अब घर जाकर जिंदा लोगों को देख लें,छोटा लड़का स्कूल से आता होगा.

दीदी के जाने पर अंग्रेजी चैनलों पर शिफ्ट होता हूं. हिन्दी चैनलों में खराब पैकेज और अतिवाद के बावजूद तरलता ज्यादा है. अंग्रेजी चैनलों पर प्राइम टाइम जैसी बहस होने लगी है. मसलन आप ये नहीं कह सकते कि शरीर राजेश खन्ना का था जबकि आत्मा किशोर कुमार. किशोर कुमार ने देवानंद के लिए भी गाया है. मीडिया को एक निश्चित सीमा के बाद आगे जाने की इजाजत नहीं है. जाहिर है वो बची-खुची सामग्री से ही काम चला रहे थे. जिससे एक समय बाद संवेदना के बजाय खीज पैदा होने लगी. रात में तो उनके निजी संबंधों और रिश्तों को लेकर जैसी-जैसी और जिस तरीके से बात कर रहे थे, घिन आ रही थी. ऐसा क्यों है कि सिनेमा,कला, रंगमंच का कोई शख्स हमारे बीच से चला जाता है तो सबसे ज्यादा गंध उसके संबंधों को लेकर मचाई जाती है जबकि भ्रष्ट से भ्रष्ट नेता के गुजरने पर चैनल महानता के कसीदे गढ़ने में कहां से शब्द ढूंढ लाते हैं ? कल से अब तक चैनलों ने राजेश खन्ना को लेकर जो कुछ भी दिखाया, कहीं से वो श्रद्धांजलि जैसा नहीं लग रहा था या तो मास हीस्टिरिया पैदा करने की कोशिश थी या फिर चैनलों का वो फूहड़पन जो ग्रेट इंडियन लॉफ्टर चैलेंज या कॉमेडी सर्कस जैसे शो से तैरकर इधर आ गया था.

इन सबके बीच हेडलाइंस टुडे को देखना अच्छा लगा. स्टूडियो से एंकर अपनी रिपोर्टर को राजेश खन्ना के अंदाज में ही पुष्पा की जगह बार-बार रश्मा-रश्मा संबोधित कर रहा था.

Viewing all articles
Browse latest Browse all 135

Trending Articles