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Channel: हुंकार
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ब्लॉगिंग करते हो गए आज छह साल

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"विनीत, आपकी शर्ट की साइज क्या है? प्लीज, आप ऐसा मत कीजिए मेरे साथ..मैं ऐसे मौके पर अपने को बहुत हारा हुआ और एक हद तक अपमानित महसूस करता हूं. हम ब्लॉगरों को आप बोलने के लिए बुला ही लेते हैं सो काफी है. हम बस इस बात के भूखे हैं कि लोग हिन्दी में नए तरीके से, नए मिजाज से जो कुछ भी लिखा जा रहा है, उसे सुनें-पढ़ें...बताइए न, 40 या 42. पूछने से यही दिक्कत है..खैर, आप आ जाइएगा समय पर."

एक संस्था में बोलेने जाने के पहले वहां की एक अधिकारी ने जब शर्ट की मेरी साईज पूछी तो मैं इस तरह झेंप गया कि उतनी शर्म चड्डी की साइज पूछने पर न आए..ऐसे समय में पता नहीं क्यों मैं अपने को रोक नहीं पाता, बहुत ही कमजोर और किसी न किसी रुप में अपमानित महसूस करता हूं. मुझे कहीं से इस बात का एहसास नहीं हो पाता कि कोई मेरे सम्मान में,स्नेह में, प्यार में ये सब कर रहा है..कॉलेज में मीडिया की कक्षाएं लेते हुए जब भी ऐसी स्थिति बनती है कि कोई मुझे शिक्षक दिवस पर उपहार देने की कोशिश करता है, किसी मौके पर कुछ खिलाना चाहता है, ऐसा लगता है कि तत्काल धरती फटे और मैं समा जाउं..ये संस्कार ब्लॉग से ही आए हैं शायद और वैसे भी पिछले कुछ महीने से मैं इस गहरी पीड़ा से गुजर रहा हूं कि जैसा और जो कुछ चल रहा है, ऐसा अगर लंबे समय तक चलता रहा तो यकीन मानिए, मैं अपने भीतर की उस आग को खो दूंगा जिसे बड़ी जतन से साल-दर-साल ब्लॉगिंग करते हुए सहजने की कोशिश करता रहा..उस दौर से जब हमें लिखने के पैसे नहीं मिलते थे, हमारे पास लैपटॉप या कोई और साधन नहीं थे लेकिन मजाल है कि किसी दिन पोस्ट न लिख पाउं. मेरी ब्लॉग पर अति सक्रियता को देखकर कुछ लोग कहा भी करते, अभी जोश है, बाद में भूल जाओगे कि तुम कभी ब्लॉगिंग भी किया करते थे. लेकिन नहीं, टेढ़े-मेढ़े, अपने को बचाते रहने की कोशिश के बीच ब्लॉग लिखना जारी है. हां, इस बीच ये जरुर हुआ है कि लेआउट पर जाकर सेटिंग से लेकिन कम्पोजिंग में ज्यादा जहमत होने की वजह से फेसबुक पर माइक्रो ब्लॉगिंग ज्यादा हो गई है..लेकिन जब कभी सोचता हूं कि क्या आनेवाले समय में ब्लॉगिंग एकदम से छूट जाएगा तो लगता है कि तो फिर बचेगा क्या ? खैर, ये सब करते-कराते, देखते-देखते छह साल गुजर गए.

मेरे लिए ब्लॉगिंग शुरु से ही एक खास किस्म की जिद का हिस्सा रहा है. मुझे नहीं पता कि पाठ्यक्रम के खपाने के लिए देशभर में ब्लॉगिंग पर जो दर्जनों किताबें लिखी गई और लिखी जा रही है..कौन-कौन सी सीमाओं और शर्तों के बीच इसे बांधा जा रहा है लेकिन मुझे अभी भी लगता है कि दुस्साहस ही इसकी आत्मा है, रचनात्मकता और बाकी चीजें इसके बाद आती है. अब जिस तरह से लोगों ने इसे चमचई और टीटीएम का जैसा अखाड़ा इसे बना दिया है, ब्लॉग के पुराने दौर को याद करता हूं तो हर दूसरा ब्लॉगर सामनेवाले के लिए तेल नहीं रिंगगार्ड लेकर खड़ा नजर आता था..तू खुजला,मैं मलूंगा..यकीन मानिए, जिस ब्लॉग ऐसे दर्जनों छुईमुई, दंभी मठाधीशों जिनके कि एक शब्द लिख देने भर से पूरी भारतीय संस्कृति खतरे में पड़ जाया करती है, उन्हें सहने की ताकत दी, उन्हें इस बात का शिद्दत से एहसास कराया कि सिर्फ साल-दर-साल भकोसते रह जाने से कोई बड़ा पत्रकार या साहित्यकार नहीं हो जाता और न ही लेखन कोई आलू-प्याज की खेती है कि एक समय करो और बाकी कोल्ड स्टोरेज में रखकर उसकी कमाई खाओ. ब्लॉगिंग ने ऐसे गाथा गानेवाले आत्मश्लाघियों को कुछ नहीं तो इतना असंतोष और खतरा तो पैदा कर दिया कि महान से महान और कालजयी से कालजयी रचना और गंभीर से गंभीर पत्रिकाओं में छपते रहने के बावजूद ब्लॉग की दुनिया में अगर आपकी दखल नहीं है तो ये बहुत संभव है कि आप एक बड़ी दुनिया के लिए जातिवाचक संज्ञा हैं. ये अकारण नहीं है कि शुरुआती दौर में जो महंत,धीर-गंभीर मुद्रा में साहित्य सेवा में लगे लोग ब्लॉगरों को दमभर कोसते थे, अब वे हम जैसे सतही लेखन करनेवाले से कहीं ज्यादा सक्रिय और धड़फड़ाते नजर आते हैं. जिस ब्लॉग को उन्होंने अपनी अक्षमता और नासमझी में नक्कारा, आज उसी में हाथ-पैर मार रहे हैं..ये अपनी दुनिया में भले ही तीसमार खां रहे हों लेकिन हम ऐसे वर्चुअस स्पेस शिशुओं को गोड-गांड फेंक-फेंककर खेलते देखते हैं तो भीतर ही भीतर हंसी आती है.

इनमे से कई लोग नवरात्रा के आर्डर के लड्डू टाइप से इसके इतिहास और प्रासंगिकता पर आनन-फानन में कुछ लिखकर टांग देते हैं और अगर किसी सरोकारी पत्रिका के लिए लिखा है तो उसकी सॉफ्ट कॉपी की लिंक ठेलनी शुरु कर देते हैं. ऐसे वक्त मुझे बेहद संतोष होता है कि हमारे साथ एक ऐसा जिया हुआ इतिहास है, जिसके एक-एक संदर्भ और परिप्रेक्ष्य के हम गवाह रहे हैं और जब चार साल-पांच साल बाद कोई नउसिखुआ महंत उस पर लिख रहा होता है तो लेखन के नाम पर कैसा चोपा मार रहा होता है..हम ब्लॉगिंग करते हुए कभी भी इस खुशफहमी में नहीं रहे कि एक हाथ में क्रांत की मशाल और एक कंधे पर प्रतिरोध की गठरी लेकर कोई दुनिया बदलने निकले हैं लेकिन ये बात मैं बार-बार महसूस करता हूं कि अगर मैंने ब्लॉगिंग नहीं की होती तो शायद मैं चीजों के प्रति बेबाकी से नहीं लिख पाता..लोगों के बीच के प्रोपगेंडा को समझ नहीं पाता..चमचई और प्रोफेशल स्तर की कमजोरी की कॉकटेल को समझ नहीं पाता. आज मुझे बहुत कुछ ऐसा है जो बिल्कुल अच्छा नहीं लगता और मैं उसका हिस्सा नहीं बनना चाहता, गर ब्लॉगिंग न करता तो शायद इतने स्पष्ट रुप से फैसले लेने की क्षमता और हिम्मत नहीं जुटा पाता. छह साल की इस ब्लॉगिंग ने मुझे बेहद मजबूत और लुम्पेन टाइप के लोगों के प्रति ज्यादा क्रिटिकल बनाया है, दूसरी तरह इस बात के लिए बेहद ढीठ कि कुछ भी हो जाए, लिखना नहीं छोड़ना है..आमतौर पर थोड़ी सी हील-हुज्जत हुई नहीं कि अहं को टिकाकर बैठ गए और देखते ही देखते कट लिए. अगर उन्होंने ब्लॉगिंग की होती तो शायद मेरी ही तरह हो जाते.

छह साल पीछे पलटकर देखता हूं तो लगता है एक दुनिया है जो सिर्फ और सिर्फ मेरी अपनी दुनिया है..जिसमे कई दूसरे चरित्र तो हैं लेकिन उसका मुख्य किरदार मैं खुद हूं..मेरी इस दुनिया में भाषिक अभिव्यक्ति के नाम पर काफी कुछ बेहद बचकाना, पर्सनल, एकाकीपन लिए है लेकिन अच्छा है कि ये सिर्फ मेरी लिखावट नहीं बल्कि वो छोटे-छोटे प्रसंग हैं जिन्हें लिखता नहीं तो शायद बुरी तरह परेशान हो जाता, आपसे साझा नहीं करता तो रहा नहीं जाता..ये मेरे अकेले की अटारी है जिस पर चढ़कर मैंने हाफिज मास्टर की तरह खूब बतकही की है..अब बस हमेशा यही लगता है कि इस अटारी की आवाज शोर के बीच गुम हो जाए तो गम नहीं लेकिन आगे बढ़ते हुए पीछे के जितने सालों की तरह नजर डालं, कभी ये न लगे कि आग ठंडी पड़ती जा रही है....

यार ललित, ये तुम्हारा ब्लॉग इतना नक्कारा है कि पिछले साल के दोनों में से किसी भी एक वायदे को पूरा नहीं कर पाया. तुमने कहा था कि अगले साल अपने ब्लॉग के जन्मदिन तक अपनी क्रेडिट कार्ड बनवा लोगे ताकि डोमेन के पैसे होस्ट को इससे ट्रांसफर कर सको और दूसरा कि अकेले नहीं रहोगे..हमने दोनों में से कुछ नहीं किया और देखो इस बार भी अपनी बेशर्मी दिखा दी..ललित इस साल माफ कर दो, अगली साल तक अकेले का तो पता नहीं लेकिन क्रेडिट कार्ड को लेकर जरुर सक्रिय रहूंगा. शुक्रिया दोस्त, आप हर साल मेरे ब्लॉग का जन्मदिन आने से चार साल पहले याद दिलाते हो कि चार दिन बाद ये डोमेन एक्सपायर हो जाएगा और हर बाद उत्साह बढ़ाते हैं- हम तुम्हारे हुंकार को जिंदा रखेंगे.

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