Quantcast
Channel: हुंकार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 135

कहानीकार प्रेमपाल शर्मा को किताबवाले बाबा भी कहते हैं, नहीं पता था

$
0
0
कथाकार प्रेमपाल शर्माको किताबोंवाले बाबा कहते हैं, ये बात मैं पहले नहीं जानता था. उनकी रचनाओं के बजाय जनसत्ता में छपे लेख और उनकी ही रचनाओं पर लिखी समीक्षा ही पढ़ी है.आज से कोई दस साल पहले एमए के दिनों में एक-दो बार बेहद ही औपचारिक मुलाकात हुई है. हमारे सीनियर( हालांकि उन्हें ये कहलाना बिल्कुल भी पसंद नहीं, दोस्त कहो ऐसी हिदायत देते, फिर भी) उमाशंकर सिंह से उनके बारे में चर्चा सुनी थी और एकाध बार उनके साथ रेलवे भवन में मिला भी. बातचीत में बेहद सहज और आत्मीय लगे मुझे. इन सबको जोड़-जाड़कर कह सकता हूं कि मैं उन्हें एक हद तक जानता हूं. लेकिन ये अपने गांवघर और लोगों के बीच किताबोंवाले बाबा के नाम से एक खास कारण से मशहूर हैं, इसकी जानकारी आज सुबह एफएम गोल्ड से मिली.

एआइआर एफएम गोल्ड ने बताया कि प्रेमपाल शर्मा को बचपन से किताबों का शौक था. छुटपन के दिनों में अपने पिताजी की किताबें, धार्मिक पुस्तकें जो कुछ भी घर में पड़ी होती थी, उन्हें पढ़ना शुरू किया. किताबों के प्रति लगाव गहराता गया. रेलवे में बतौर अधिकारी होने के बाद ये शौक और बढ़ता ही चला गया जो कि सिर्फ अपनी लाइब्रेरी बनाने और पुस्तकें लिखने तक सीमित नहीं रही बल्कि गांवघर में भी लाइब्रेरी बनाने का ख्याल आया. एफएम गोल्ड ने बताया कि प्रेमपाल शर्मा की बनायी लाइब्रेरी का असर ये है कि वहां नियमित आनेवाले छात्रों खासकर लड़कियों के परिणाम पहले के मुकाबले काफी बेहतर आने लगे. हममे से अधिकाश लोग जिस लाइब्रेरी गैरजरूरी मानने लगे हैं और वहां जाकर वक्त नहीं बिताते, प्रेमपाल शर्मा की इस लाइब्रेरी से कई छात्रों की जिंदगी बेहतर हो रही है.

एफएम गोल्ड पर जब मैं प्रेमपाल शर्मा के बारे में ये सब सुन रहा था तो दो बातें मेरे दिमाग में बार-बार आ रही थी- पहली तो ये कि क्या प्रेमपाल शर्मा या किसी भी हिन्दी के साहित्यकार पर कोई दूसरा निजी एफएम चैनल मुफ्त में ऐसी स्टोरी प्रसारित करेगा ? मुफ्त का आशय बिजनेस टाइअप से हैं जहां प्रेमपाल शर्मा जैसे किसी भी हिन्दी के साहित्यकार पर चैनल के अपने स्टीगर चिपकाने की शर्त न हो या फिर वहां किसी प्रकाशन संस्थान के साथ टाइअप करके न आया हो ? और दूसरा कि एक लेखक, एक साहित्यकार अपनी जिंदगी में जो लिखता है, उसका थोड़ा ही सही हिस्सा असल जिंदगी में जीना शुरू कर देता है तो उससे कितनों की जिंदगी बदल जाती है ? शब्दों के प्रति यकीन कितना गुना बढ़ जाता है ? तभी मुझे "एक्टिविस्ट राइटर"होने की जरूरत सही संदर्भ में दिखलाई पड़ती है.

 मेरे दिमाग में ये योजना सालों से चल रही है कि हमारे आसपास जो भी बड़े लेखक हैं, उनसे आग्रह करें कि आप उन किताबों को हमें दे दीजिए जो आपके लिए उतने महत्व के नहीं, बिना आपकी इच्छा के आपतक सेवार्थ लिखकर आ गए हैं. हम उन्हें जमा करेंगे और सही पाठक तक पहुंचाएंगे, उन पीढ़ी तक मूल पाठ पहुंचाएंगे जो अभी तो मुक्तिबोध, नागार्जुन, रेणु को "चुटका पुस्तक"के माध्यम से पड़ रहे हैं और उच्च शिक्षा की जो हालत है, जल्द ही पीपीटी( पावर प्वायंट प्रेजेंटेशन ) के माध्यम से अंधेरे में, अकाल और उसके बाद और मैला आंचल का गहन अध्ययन करेंगे. प्रेमपाल शर्मा पर सुबह-सुबह ये फीचर सुनकर खोई हुई चीज मिल जाने का एहसास हुआ और खत्म होती चीजों के सहेजने की ललक भी.. बस आखिर में मामला थोड़ा गड़बड़ा गया और पूरे फीचर को एक मिनट में कसैला कर दिया जब रेडियो प्रस्तोता ने कहा-

किताबों की बात तो बहुत हो गई, अब सुनिए ये गाना- किताबें बहुत सी पढ़ी होगी तुमने
मगर तुम्हें चेहरा भी पढ़ा है
पढ़ा है मेरी जां, नजर से पढ़ा है
बता मेरे चेहरे पे क्या-क्या लिखा है..




Viewing all articles
Browse latest Browse all 135

Trending Articles