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Channel: हुंकार
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तब तो इस किताब की कवर पीके की पोस्टर से ज्यादा अश्लील है ?

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मेरे पास क्रिस बार्कर की एक किताब है- कल्चरल स्टडीजः थीअरि एंड प्रैक्टिस. मूलतः ये रीडर है जो सांस्कृतिक विमर्शों को समझने के लिए बेहद जरूरी किताब है. वैसे भी क्रिस बार्कर मीडिया और कल्चरल स्टडीज की दुनिया में वो नाम है जिनकी किताब एक बार हाथ में आ जाए तो आपको एक-एक पंक्ति चाट जाने का मन करेगा. खैर
बार्कर की इस किताब की जो कवर है वो राजकुमार हीरानी की आनेवाली फिल्म पीके की पोस्टर से कहीं ज्यादा अश्लील है. ऐसा इसलिए कि इस पोस्टर में आमिर खान जहां अपनी लिंग के आगे टेपरीकॉर्डर लटकाए हैं वहीं इस कवर पेज में लिंग के आगे महज एक सीडी चिपका दी गई है. यानी टेपरीकॉर्डर में जितना गोल हिस्सा जो कि संतोष और पैनसॉनिक का मॉडल है और स्पीकर का हिस्सा हुआ करता था, बस उतना ही. सीडी चिपकाने के बावजूद प्यूबिक हेयर साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं जबकि आमिर खान की लिंग के आसपास का हिस्सा पूरी तरह ढंका है.

इस किताब पर मेरी पहली नजर डीयू की आर्ट्स फैकल्टी की लाइब्रेरी सीआरएल में सोशियलॉजी सेक्शन में रखी होने पर पड़ी थी. मैंने क्रिस बार्कर की इससे पहले "टेलीविजनः ग्लोबलाइजेशन और कल्चरल स्टडीज"पढ़ ली थी और रेमंड विलियम्स, जॉन स्टोरे की तरह ही ये नाम मेरे जेहन में इस तरह से बैठ गया था कि इनका लिखा कुछ भी हो तो जरूर पढ़ता. मैंने किताब इश्यू करायी. काउंटर पर लाइब्रेरियन ने उलट-पलटकर देखा और फिर इश्यू कर दिया. किताब पढ़ने के बाद अपने मेंटर से इस पर चर्चा की. बाद में मंहगी होने के बावजूद इसे खरीद ली. कुछ दिन बाद देखा तो विभाग के कुछ लोगों के हाथ में इसकी फोटोकॉपी दिख गयी. लेकिन तब किसी ने इस किताब की कवर पेज को लेकर ठीक इसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और न ही कवर पेज की ललक के कारण इसकी फोटोकॉपी करायी थी.

सवाल है कि क्या क्रिस बार्कर की इस अतिगंभीर किताब के लिए कोई दूसरा कवर नहीं मिला था और गर कोई दूसरी कवर लगाते तो इसकी बिक्री पर फर्क पड़ जाता ? शायद नहीं..लेकिन इस कवर पर गौर करें तो सूचना संजालों के बीच फंसे ये उस इंसान की छवि को स्थापित करता है जिसके जीवन का बड़ा हिस्सा इन माध्यमों और उनसे निर्मित छवियों के बीच निर्धारित होता है. गौर करें तो बिना किताब पढ़े काफी कुछ समझा जा सकता है. लेकिन आमिर खान की इस तस्वीर को जिस आधार पर अश्लील कहकर आलोचना की जा रही है, उसके मुकाबले इस किताब की प्रतियां जला देनी चाहिए थी लेकिन मुझे यकीन है कि अब भी इस किताब की प्रति डीयू सहित देश की बाकी लाइब्रेरी में भी होगी.

आखिर मामला क्या है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा समाज पुरुष देह को इस रूप में देखने का अभ्यस्त नहीं रहा और स्त्री देह की नग्नता ही सौन्दर्य के रूप में परिभाषित किया जाता रहा है तो अब ये नजारा कुछ ज्यादा ही अश्लील जान पड़ रहा है..या फिर किताबों की दुनिया इतनी बंद है कि उनलोगों की इस पर नजर नहीं गई जिन्हें ऐसे पोस्टर से आपत्ति है. मतलब अज्ञानतावश उन्होंने लाइब्रेरी में आग लगाने का सुनहरा अवसर खो दिया. इन सबके बीच आमिर खान के समानांतर एक तस्वीर वर्चुअल स्पेस पर साझा की जा रही है और बताया जा रहा है कि ये उसी की नकल है. लेकिन किताब की कवर पेज पर गौर करें तो पीके की पोस्टर न केवल इसके ज्यादा करीब है बल्कि कन्सेप्चुअली भी इसके अर्थ को ध्वनित करता है.

ये बात अलग से कहने की जरूरत नहीं है कि अब इस पोस्टर को जहां सिनेमा की पीआर एजेंसी पब्लिसिटी स्टंट के रूप में इस्तेमाल करेगी जबकि मेनस्ट्रीम मीडिया में भारतीय संस्कृति को लेकर एक बार फिर से उफान आएगा..और इन सबके बीच तथाकथित इससे कहीं ज्यादा अश्लील कवर लाइब्रेरी की सेल्फ से चलकर हमारे-आपके हाथों तक पहुंचती रहेगी.

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